तेरा बँधन तो पुराना सा लगे है मुझसे...
दिखे कभी, कभी न आए नज़र!
कभी बादल में तू पानी की तरह,
कभी पानी में है लहरों की तरह,
कभी लहरों में रवानी<ref>बहाव, बहते रहना</ref> की तरह…
तेरी हस्ती जुड़ी हुई है इस क़दर मुझसे,
तुझे,
चाहूँ भी अगर,
तो जुदा न कर पाऊँ!
कभी दरिया को किनारे की तरह,
कभी गिरते को सहारे की तरह,
कभी इक ख़्वाब सुनहरे की तरह,
रही है मुझको भी उतनी ही ज़रूरत तेरी!
मैने हर लम्हा ये चाहा कि निभाऊँ तुझ से,
किसी भी हाल में मै दूर न जाऊँ तुझ से...
बड़े अजीब से रिश्ते रहे हैं तेरे मेरे!
कभी सहरा<ref>रेगिस्तान</ref> में है बादल की तरह,
कभी बादल में तू पानी की तरह!
मार्च 1996
शब्दार्थ
<references/>