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रिश्ते का रास्ता / प्रमोद कुमार

मैं समझता था रिश्ते का महत्त्व
फूँक-फूँक कर क़दम रख रहा था
सम्भल-सम्भल कर उनसे बोलता
कि किसी बात पर दरक न जाए रिश्ता

वह बेफ़िक्र चल रहे थे
प्रिय और कटु का फ़र्क किए बिना बोलते,
रिश्ते की गहराई पर भरोसा था उन्हें

उनके निडर देशज भदेस के सामने
मेरे हर शब्द में
अविश्वास का सम्भ्राँत काँप रहा था,

मैं रिश्ते को बचा रहा था
      वह उसे आगे बढ़ा रहे थे ।