बैरागी मौसम ने खोल दिए द्वार
शाखों ने पहने हैं फूलों के हार
रेशम-सी कलियों में
प्रेमिल अहसास
धड़कन भी डोल रही
साँसों के पास
भँवरों ने घूम–घूम
बिखराया प्यार
नदिया की राहों में
पर्वत के गाँव
प्रियतम की आँखों में
तारों की छाँव
यौवन में उमड़ा है
लहरों का ज्वार
रसवन्ती बाँहों में
मचला है रूप
धरती ने ओढ़ी है
उजली-सी धूप
रिश्तों का बन बैठा
पावन आधार