Last modified on 20 अक्टूबर 2019, at 00:12

रिश्तों की लाशें / उर्मिल सत्यभूषण

गांठ तो पक्की थी
धागे ही कच्चे थे
सो टूट गये
नेह के वे सारे
सम्बोधन ही छूट गये।
हम कायर हैं
दब्बू हैं-
संस्कारों के पिट्ठू हैं
हंसते हैं रोते हैं
रिश्तों की लाशों को
रो-रोकर ढोते हैं।