किसको दुख देते हम
किसका दुख लेते,
उम्र कटी रिश्तों को
गुणा भाग देते I
प्यासी है सतह
और होंठो पर पानी,
हर बहती सरिता कि
है यही कहानी;
सपनों की नाव यहाँ
कब तक हम खेते I
अनचाहा बोझ लिये
ये अपने साये,
सूरज जब तेज़ हुआ
और सिमट आये;
जब सब-कुछ टूट गया
तब जाकर चेते I
निर्वासित आज हुईं
मौन प्रतिज्ञाएँ
सपने-सा तोड़ गईं
हमको दुविधाएँ
दो जगते बिम्ब बने
नींद के चहेते I