वैदर्भी - हंसी गति, वंशी क धुनि रूप अनूप रचैछ
वैदर्मी धनि रीति वश रसिक स्व-वश कय लैछ।।34।।
गौड़ी - गौर अंग, गुन गौरवित पद समस्त मस्तीक
ओज भरलि उद्दीपिका गौड़ी गिरा प्रतीक।।35।।
पांचाली - सघन जघन पद, गति तुलित, ओज मधुर धुनि गीत
कन्या कुब्जो धरि सुघड़ि पांचाली रस रीत।।36।।
लाटी - वचन रचन पटु, चटुल दृग कलित केश विन्यास
रस परिपाटी कत अधिक लाटी रीति विलास।।37।।