मेरे उर के उद्गारों से नहीं किसी का नाता
मेरे अधर पटल पर आया गीत किसे है भाता
मैं यादों के सागर में निर्द्वन्द विचरता रहता
मैं रीती गागर अपने आँसू से भरता रहता
मेरा माँझी ही नैया को भँवर बीच ले जाता
मेरे उर के उद्गारों से नहीं किसी का नाता
सावन की रिमझिम बरखा तो सदा सुधा सरसाती
सूखे खेतों को रस-धारा हरा-भरा कर जाती
मैं ही अपने उपवन को कलियों से सूना पाता
मेरे उर के उद्गारों से नहीं किसी का नाता
मैं सूनी-सूनी गलियों में राग सुनाऊँ किसको
अपने ही जब दूर हो गये पास बुलाऊँ किसको
मौत कर रही आलिंगन लेकिन जीवन शरमाता
मेरे उर के उद्गारों से नहीं किसी का नाता