सूख चला है जल जीवन का
अर्थहीन तटबन्ध हुए
शुष्क धरा पर तपता नभ है
रीते घट सम्बन्ध हुए
सन्देहों के कच्चे घर थे
षड्यन्त्रों की सेन्ध लगी
अहंकार की कंटक शैया
मतभेदों में रात जगी
अवसाद कलह की सत्ता में
उत्सव पर प्रतिबन्ध हुए
ढाई आखर वेद छोड़ कर
हम बस इतने साक्षर थे
हवन कुण्ड पर शपथ लिखी थीं
वादों पर हस्ताक्षर थे
हुईं रस्म सब कच्चा धागा
जर्जर सब अनुबन्ध हुए