रुत आई जाड़े की!
लोंग मिर्ची तुलसी अजवाइन
दादी के काढे की!
दादा जी का कोट धरोहर
लगे अजायबघर की
मोहर धुलाई की इस पर है
अंकित सन सत्तर की।
कहते दादी जी अपनी है
चीज नहीं भाड़े की।
गरमा गरम रोटियाँ निकली
चूल्हे से मक्का कि
बहुत संभाला मगर टपक
ही गई लार कक्का कि
मिमियाती है रात-रात भर
भेड़ खुले बाड़े की।