चलि गइल चलि गइल चलि गइल
रूप के जादू
आजु हमरे पर चलि गइल।
एइसन सुघराई के पूजा के ना करी
जोति पर कवन ऊ फतिंगा जवन ना जरी
होठ के ललाई पर, देंहि के गोराई पर
नाक सुग्गा ठोर अउर गाल के चिकनाई पर
आँखि के कटारी पर वीर कवन ना मरी
ए भोली सूरत पर मनमोहक सीरत पर
ए बाँकी चितवन पर ए निखरल यौवन पर
तोहरी दुआरी पर के ना पानी भरी।
बदन के कसावट पर, गठन पर बनावट पर
रूप के तरावट पर रंग के जमावट पर
लाल पर लगावट पर, एइसन सजावट पर
बादर कवन बरसी न कवन फूल ना झरी।
धनि ओ विधाता के तोहके बनावल जे
धनि पिता-माता के तोहके सिरजावल जे
सगरो गरूर आ गुमान जवन रहल ह
धन दउलति आन बान शान जवन रहल ह
ए रूप के आगे सब माटी मिलि गइल
इसपाती लोहा अस मन हमार गलि गइल
चलि गइल चलि गइल चलि गइल।
रूप के जादू आजु...।