रूप बादल हुआ
प्यार पागल हुआ
क्यों नदी घाट की प्यास बुझती नहीं
मेघ घिरते रहे कामना की तरह
हम तरसते रहे प्रार्थना की तरह
धैर्य बंधन हुआ
दर्द क्रंदन हुआ
क्यों सुखद नेह की बूँद झरती नहीं
सीपियाँ तन बदन मोरपंखी नयन
ढूँढती है किसे खुशबुओं की छुअन
नैन दपर्ण हुआ
अश्रु अंजन हुआ
क्यों हिरन की व्यथा रेत सुनती नहीं
धूप से छांव तक हम भटकते रहे
अजनबी की तरह घर में रहते रहे
मौन परिचय हुआ
क्रूर संशय हुआ
क्यो घुटन की किठन रात कटती नहीं