Last modified on 29 सितम्बर 2010, at 15:34

रूलाई / लीलाधर मंडलोई


जीवन में हंसने का अनुपात
निकल आता है रोने से अधिक

मुझे याद नहीं रहते
हंसने के पल

याद है अपना हर रोना

रूलाई की स्‍मृति सबसे गाढ़ी है