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रूस की लड़कियाँ / येव्गेनी येव्तुशेंको

"खेत से
गुज़र रही थी लड़की
गोद में
एक बच्चा लिए थे लड़की"

यह गीत पुराना
जैसे झींगुर कोई गा रहा था
जैसे जलती ही मोमबत्ती का
पिघला मोम कुर-कुरा रहा था

ओ... सो जा रे, सो जा, सो जा तू...
जिसने ख़ुद को पालने में यूँ नहीं झुलाया
जिसने ख़ुद को सहलाने और मसलने दिया
खेतों में और झाड़ियों में,
लोरी गाकर नहीं सुलाया
तैयार करें वे अपनी बाहें
और गोद
किसी किलकारी को
पैदा होंगे नन्हे बच्चे
हर ऐसी ही नारी को

हर गीत के होते हैं
अपने ही कारण रहस्यमय
हर फूल के होती है योनि
और पराग-केसर का समय

ऐसा लगता है
खेत उन दिनों पड़ा था नंगा
और लड़की थी वह
अपने बच्चे के संग
पर क्या हुआ फिर बाद में इसके
भला कहाँ पढ़ेंगे, कहाँ सुनेंगे हम
कहानी वह निस्संग

और
वह गीत ख़राब-सा
कहवाघरों की शान बना कब ?
क्या शासन था तब ज़ार निकलाई का ?
या बोल्शेविकों का, हातिमताई का ?
लेकिन पता नहीं क्यों होता है ऐसा
चाहे कोई भी समय हो
भूख अशान्ति और लड़ाई
बच्चों को लिए अपनी गोद में घूमें
जैसे उन्हें नहीं कोई भय हो

लड़की वह
गुज़र रही थी रोती
बहकी-बहकी चाल थी उसकी
और गोद में नन्हीं बच्ची
नंग-धड़ंग थी उम्र की कच्ची
उखड़ी-उखड़ी साँसें उसकी
जैसे पड़ी हुई थी मार के मुस्की

मुँह फाड़कर रोई ऐसे
चीख़ी चिल्लाई हो जैसे
क्या फ़र्क पड़ता है वैसे
यह क्रान्ति से पहले हुआ था
या उसके बाद किसी दिन
उसे अपशगुनों ने छुआ था

इन क्रान्तियों का
मतलब क्या है ?
उनके रक्तिम-चिह्नों से भी
भला क्या हुआ है ?
सिर्फ़ रक्त बहे और आँसू बहे
जीवन ने कितने कष्ट सहे
उनसे पहले, उनके दौरान,
उनके बाद भी
जीवन नहीं हुआ आसान

हो सकता है हुआ हो ऐसा
क्या कहूँ मैं, कैसा-कैसा
सूख गए हों आँसू माँ के
मृत चेहरे पर तेरे
तेरे कोमल होठों पर वह
अपने सूखे होंठ फेरे
ले गई हो परलोक में
मृत्यु तुझको घेरे

हो सकता है—
तू बड़ी हो गई हो
मूरत प्रेम की खड़ी हो गई हो
तब मृत्यु ने आ घेरा हो तुझे
इस तरह से हेरा हो तुझे
पलकों के नीचे तेरी जो
दो बड़े नीले फूल खिले थे
जैसे अब जा धूल मिले थे

हो सकता है—
तू जान गई हो
बड़ी नहीं होगी, पहचान गई हो
भूख से मर जाएगी तू
इससे भी अनजान नहीं हो

या तुझे
खा गए हों रिश्तेदार
भेड़िए भूख से बेज़ार
वोल्गा के तटवर्ती इलाकों में कहीं
तू छोड़ गई हो यह संसार

हो सकता है—
तू पड़ी मिली हो
किसी खोह में अँधेरी
और तुझे दफ़ना दिया गया
जब पहचान नहीं हो पाई तेरी

हो सकता है—
जीवन में तूने
झेले हों असंख्य अत्याचार
कहीं खेतों के बीच पटककर
तेरे साथ भी किया हो किसी ने
घृणित बेरहम बलात्कार

हो सकता है—
बड़ी होकर भी
रोई हो तू जीवन भर
साइबेरिया के ठण्डे बर्फ़ीले तिमिर में
फिर मारी गई हो किसी यंत्रणा-शिविर में

बच्ची वह
रोई थी ऐसे
चेहरा उसका ऐंठ गया था
चेहरे पर पीड़ा थी गहरी
लाल झण्डा वहाँ जैसे पैठ गया था

क्या होगा
क्रान्ति से भला ?
इस भयानक मार-काट के बाद
फिर से असहनीय रुदन फैला है
और रूस है आज़ाद

रूसी खेतों से
बेड़ी पहने
लड़कियाँ गुज़र रही हैं फिर से
उनके नन्हे बच्चों की चीख़ें
उमड़ रही हैं मेरे सिर पे ।

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय