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रेत (3) / अश्वनी शर्मा

जेठ की घाम में
धू-धू करता है रेगिस्तान
सांय सांय करती है लू
भांय-भांय करता है सन्नाटा
फिर भी भेड़ का एक मेमना
बचा रहता है
भेड़ हो कर भी