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रेत की पीड़ा / ओम पुरोहित ‘कागद’

हां
ज़रूर था यहां सागर
मगर
रेत ने तो नहीं पीया
सारा का सारा पानी!
सूरज
जो अटल चमकता रहा
बहुत प्यासा था
आखिर
अपनी सदियों पुरानी
प्यास बुझा गया
और
छोड़ गया
एक खाली बर्तन सा
यह मरुथल!