Last modified on 6 अगस्त 2010, at 21:13

रेत जाये / हरीश भादानी

रेत जाये
दर्द की
यह प्यास
कैसी है
कि आँखें जोड़
सूरज से
पिये जाए
पानी की तरह
आवाजों को
           
फरवरी’ 77