तुम जब लिख रही थी
रेत पर मेरा नाम
मैंने महसूस किया था
तुम्हारी उंगलियों की पोरों को
तुम्हारी तन्मयता
मेरे बहुत अंदर तक पहुंच गई थी
रेत पर लिखा नाम
मेरे अंदर बहुत कुछ
तरल कर गया था
मैंने देखा था
उस वक्त प्रेम को
शरीर बने हुए
जो रेत के टीले पर
पिघल रहा था
बिना किसी आकार का
शरीर
रेत के टीलों से लेकर
आकाशीय विस्तार तक
फैला था सिर्फ
प्रेम होकर
तुम बहुत अच्छी
तरह जानती हो कि प्रेम
रेत पर लिखा नहीं जाता
कितना ही गहरा हो चाहे
रेत मिटा देती है
हर लिखे गये नाम को
तुम क्यो नहीं मानती
कि रेत पर प्रेम
लिखा नहीं
जिया जाता है!
रेत प्रेम को सिर्फ जीना जानती है
ं
जिये गये प्रेम को
उड़ा जाती है वो
अनजान आकाशों तक
बियाबान सन्नाटों से लेकर
गुलजार बस्तियों तक
बिखेर आती है
आंगन-आंगन
आओ सीखें रेत के साथ
प्रेम को जीना।