Last modified on 12 अगस्त 2019, at 15:33

रेफ़्रेनडम / हबीब जालिब

शहर में हू का आलम था
जिन था या रेफ़्रेनडम था
क़ैद थे दीवारों में लोग
बाहर शोर बहुत कम था

कुछ बा-रीश से चेहरे थे
और ईमान का मातम था
मर्हूमीन शरीक हुए
सच्चाई का चहलम था

दिन उन्नीस दिसम्बर का
बे-मअ'नी बे-हँगम था
या वादा था हाकिम का
या अख़बारी कॉलम था