अपनी धुरी से टूट कर अब दूर
जा गिरा है रेल का पहिया,
चमकता है आज भी लोहे का टायर
धूप में
हज़ारों यात्राओं का पिया है तेज इस इस्पात ने
यात्राओं की हज़ारों भूमियों के तेज का इस्पात
कितनी बार माँजी गई है यह चमक,
रस भरे गति का
सजल इस्पात-नीले गगन का टुकड़ा
आवृत्ति-दर-आवृत्ति
ढोता वेदना का और सुख का भार
घिर गये अभिमन्यु का यह अस्त्र अन्तिम
धुरी से टूटा हुआ रेल का पहिया
जा गिरा उस खेत
जिसमें धान का मद्धम हरा संगीत बजता है