रेल की पटरी हो सुनसान
चांद आज नहीं निकले
कुत्ते भूँकते हों दूर
भगवान ग्लास फ़ैक्टरी का भोंपू
बोलने में देर हो
दूर-दूर तक कुछ नहीं
सिर्फ़ अंधेरा
ऐसे में वह
बस्ती से दूर आए
सूनी पटरी पर बैठे
फिर खड़ा हो और
मुँह भर पुकारे
नहीं सुनेगी तू।
रचनाकाल : 1967