Last modified on 14 दिसम्बर 2010, at 12:31

रेशमी सुधियाँ / पवन कुमार मिश्र

भूली बिसरी सुधियों के संग एक कहानी हो जाए,
तुम आ जाओ पास में मेरे तो रुत रूमानी हो जाए ।

मन अकुलाने लगता है चंदा की तरुणाई से,
रजनीगंधा बन जाओ तो रात सुहानी हो जाए ।

रेशम होती हुई हवाएँ तन से लिपटी जाती हैं,
पुरवाई में बस जाओ तो प्रीत सयानी हो जाए।

मन बँधने सा लगता है अभिलाषाओं के आँचल में,
प्रिय, तुम प्रहरी बन जाओ थोड़ी मनमानी हो जाए।