हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
रे गगन गरजै झिमालै बिजली
पड़ै बुन्दिया भरैं क्यारी
समै बिरखा लगै प्यारी
कहां गए सेज के रसिया
लगा गये एक के तकिया
कहां गए बाग के माली
लगा गए एक सी डाली
रे गगन गरजै झिमालै बिजली
पड़ै बुंदियां भरै क्यारी
समै बिरखा लगै प्यारी