एक ग़ज़ल : "रोक पाएंगीं क्या ........."
रोक पाएंगीं क्या सलाखें दो-?
जब तलक हैं य' मेरी पांखें दो ।
जिसने सबको दवा-ए-दर्द दिया-
आज वो माँगता है- साँसें दो ।
चाह कर भी निकल नहीं सकता-
मुझको घेरे हुए हैं बाँहें दो ।
वो इबादत हो या की पूजा हो-
एक मंजिल है और राहें दो ।
मुझको कोई बचा नहीं पाया-
मेरी कातिल- तुम्हारी आँखें दो ।
या तो आंसू मिलें, या तन्हाई-
एक जुर्म की नहीं सजाएं दो ।