जिन दिनों
नहीं होते हम दोनों
एक दूजे के दरमियान
जिन दिनों
नहीं बुनती तुम ख़्वाब
इन्तिज़ार की सलाई पर
जिन दिनों
नहीं सुनाई तुमने
शब् भर कहानियाँ
जिन दिनों
नहीं थीं अफ़सोस की
इतनी मज़ीद वजहें
जिन दिनों
ख़र्च होती रही
नाखुदाओं से ख़ुदा तराशते
जिन दिनों
बंद रही ख़ुद में
असरार के मानिंद
जिन दिनों
लौट गयी तुम घर
देरो जूद की फ़िक्र से पहले
उन उदास
बेहद उदास दिनों में भी तुम
कैसे ख़ुश रही, 'रोज़ीना' ...