आपने पढ़ा ही होगा कि
सारे देश में शान्ति है,
कहीं कोई कष्ट नहीं
न ही कोई भ्रान्ति है.
बड़ी बड़ी आंधियां
बड़ी से बड़ी बाढ़ें
बस चन्द आदमियों को
चपेटती हैं.
दंगे होते हैं,
गोलियाँ चलती हैं,
गाड़ियाँ उलटती हैं,
और कोई मरता नहीं,
बस बस्तियां उजड़ती जाती हैं.
और फुटपाथों पर भीड़
बढ़ती जाती है.
और ये अखबार-
ये अखबार बनते जाते हैं,
फुटपाथों पर बिछावन.
(प्रकाशित, लोक-बोध, कलकत्ता, दिसंबर १९८२)