Last modified on 9 नवम्बर 2009, at 20:46

रोज़ बदलता मौसम / इला प्रसाद

यहां मौसम हर रोज़ बदलता है
और लोगों के मिज़ाज भी ।
एक मौसम इस घर का है
एक मौसम शहर का।

एक मौसम मेरे मन का है
वीतराग ...

सोंचती हूँ
कहीं जो बिठा पाती संगति
इन सबके बीच
तो मेरे मन का मौसम
क्या होता?

वहाँ हरदम शायद
वसंत होता!