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रोटी-आलू / श्रीनाथ सिंह

हुआ सवेरा, मुर्गा बोला,
घर से चला टहलने भोला!
मिला राह में उसको भालू,
लगा माँगने रोटी-आलू!
आलू बिकने गया हाट में,
भालू सोने लगा खाट में!
टूटी खाट, गिर पड़ा भालू,
अब न चाहिए रोटी-आलू!

-साभार: नंदन, अगस्त 1995, 32