अब नहीं बचा है अंतर
श्मसान और गाँव में।
रोते हैं पूर्वज
तड़पती है उनकी आत्मा
सुनसान उजड़े गाँव में
नहीं बचा है कोई
श्राद्ध-पक्ष में
कागौर डालने वाला
कौवे भी उदास है।
अब नहीं बचा है अंतर
श्मसान और गाँव में।
रोते हैं पूर्वज
तड़पती है उनकी आत्मा
सुनसान उजड़े गाँव में
नहीं बचा है कोई
श्राद्ध-पक्ष में
कागौर डालने वाला
कौवे भी उदास है।