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रोबोट / कन्हैया लाल सेठिया

उगावै
घणाईं रूंख
डील पर कांटा
पण कोनी बै
रूड़ा रूंख गुलाब,

जणै
घणीईं सीपट्यां
कूख स्यूं मोती
पण कठै बा
स्वात बूंद री आब ?

रंग, रूप
फकत
देह रा धरम
कोनी मूल संसकार
जकां रो आधार
अणाद परंपरा,

नकार‘र इण नै
आज भाजै विज्ञान
उणियारां रै लार
भरीजग्यो
मुखौटा स्यूं संसार
बणगी साव झूठ
आंख्यां देखी साच !