बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
रोमैं लयें रागनी जी की।
लगे सुनत मैं नीकी।
कौऊ सास्त्र पुरान अठारा।
चार बेद सो झीकी।
गैरी भौत अथाह भरी है।
थायमिलै ना ई की।
ईसुर साँसऊँ सुरग नसैनी,
रामायण तुलसी की।
रोमैं लयें रागनी जी की।
लगे सुनत मैं नीकी।
कौऊ सास्त्र पुरान अठारा।
चार बेद सो झीकी।
गैरी भौत अथाह भरी है।
थायमिलै ना ई की।
ईसुर साँसऊँ सुरग नसैनी,
रामायण तुलसी की।