Last modified on 13 जनवरी 2019, at 02:30

रोशनियों का सैलाब / सुरेन्द्र स्निग्ध

मैंने पहले कभी भी
महसूस नहीं की थी
नवम्बर की बरसात ।

पहले कभी मेरे कन्धों पर
नहीं टिका था
इतना सघन बादल
कभी मेरे होठों पर
नहीं हुई थी ऐसी बरसात

पहले कभी
इतनी ख़ूबसूरत
और बड़ी-बड़ी आँखों से
नहीं फूटा था
मेरे जीवन में

रोशनियों का सैलाब ।