रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक-सी दिया करती है।
मैं खोल देता हूँ चुपचाप किवाड़,
रोशनी पे सवार तेरी पदछाईं,
मेरे कमरे में उतर आती है,
सो जाती है मेरे साथ, मेरे बिस्तर पर।
रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक-सी दिया करती है।
मैं खोल देता हूँ चुपचाप किवाड़,
रोशनी पे सवार तेरी पदछाईं,
मेरे कमरे में उतर आती है,
सो जाती है मेरे साथ, मेरे बिस्तर पर।