महकी सी फिजा ..
भीगा सा आँचल ..
है धरती का ...
लहक -चहक कर
उतरे हैं मेघ फ़िर से
श्यामवर्णी ...
खिलते हुए
पत्तो में ,फूलों में
बिखर गई है
रंग और खुशबु
और ............
एक रोशनी
आब बन कर उतरी है
मेरे दिल के अन्धकार में ,
क्या यह तुम्हीं हो ?