♦ रचनाकार: अज्ञात
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लंका में हनुमान, अलबेले राम
काहे को सोटा काहे को लंगोटा
काहे चढ़ा दूं चोला।
सोने को सोटा, लाख को गोटा
सेंदुर चढ़ाय दऊं चोला।
बन-बन भटके फिरत अकेले
डाले फूलन को सेला। लंका में...।
काहे को मुकुट, काहे को मुस्टक
काहे को बनहै झेला।
सोने को मुकुट, चंदन की मुस्टक
फूलों का डाले झेला। लंका में...।