आँसू से भरने पर आँखें और चमकने लगती हैं। सुरभित हो उठता समीर जब कलियाँ झरने लगती हैं। बढ़ जाता है सीमाओं से जब तेरा यह मादक हास, समझ तुरत जाता हूँ मैं-'अब आया समय बिदा का पास।' दिल्ली जेल, दिसम्बर, 1931