लगता है जिसको बुरा
उसे लग जाने दो
मैं अगर गा रहा हूँ
तो मुझको गाने दो
गाने दो मुझको
इन बेशर्म हवाओं को
जो चुरा ले गईं
सर पर घिरी
घटाओं को
गाने दो भागीरथ की
मैली गंगा को
गाने दो
शिव की उलझी हुई
जटाओं को
इस कठिन समय में
जैसे-तैसे उमड़-घुमड़
मैं अगर छा रहा हूँ
तो मुझको छाने दो
हो चुकी बहुत बरबादी
खिली बहारों की
फूलों के दामन में है
खेती खारों की
‘जनपथ’ से लेकर
राजमार्ग तक फैली हैं
सड़कें पैरों के लिए
नहीं हैं कारों की
यदि कुछ लेागों के लिए
निकलता है सूरज
तो फिर
ऐसे सूरज में
आग लगाने दो
हमको दरकार नहीं
ऐसी सरकारों की
शीशे की दीवारें हैं
छत अंगारों की
लुट जाती है कस्तूरी
मृग के कुण्डल में
रैलियाँ निकलतीं
रोज़ सुगन्धित
नारों की
इस पर कुछ मूढ़
मंत्रणा करते
गूढ़ दिखें
इन मूढ़ों को अब
गूढ़-गढ़
समझाने दो