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लगती आज पतंग पिया / अर्चना पंडा

डोर हो तुम मैं तुमसे जुड़कर लगती आज पतंग पिया
हिचकोले खाते देखूँ आकाश तुम्हारे संग पिया

तुम बिन प्राणों के बिन होकर धरती से तकती अम्बर
संग तुम्हारा पाते ही खिल जाते मेरे अंग पिया

ऊँचा खूब उड़ाते मुझको गिरने पर तुम ही थामो
यों ही साथ रहे तो कोई हारे कभी ना जंग पिया

होश नहीं रहता है मुझको साथ तुम्हारे जब होती
मैं पगली-दीवानी डोलूँ जैसे पी हो भंग पिया

तेरा सँग जो छूटा तो मैं जाने कहाँ खो जाऊँगी
एक जनम क्या जनम-जनम तक रहना मेरे संग पिया