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लगती साँप-सपोली / मेराज रज़ा

दौड़ूँ सर-सर पटरी-पटरी,
धूल उड़ाती आऊँ!
भीड़-भड़क्का, धक्कम- धक्का,
ख़ूब सवारी लाऊँ!

दिल्ली, पटना और आगरा,
सारे शहर घुमाऊँ!
एक शहर से शहर दूसरे,
चक्कर रोज़ लगाऊँ!

दिखे जहाँ पर स्टेशन कोई,
वहीं ज़रा रुक जाऊँ!
चलने के पहले तेज़ी से,
दो सीटियाँ बजाऊँ!

बहुत दूर से देखो तो मैं,
लगती साँप-सपोली!
मुसाफ़िरों को लादे ख़ुद पर,
दौड़ूँ लेकर खोली!