उसकी काया हाड़ और मांस से निर्मित थी
ऐसा लोग कहते हैं
वह सही-सही पत्थर और आग से बनी थी
ऐसा मैं महसूस करता हूँ
फूलन ने जब धरती को चूमा
तब वह फूल जैसी थी
करुणा के दो फूल सी आँखे
महकती हुई एक मुलायम मन वाली बच्ची
तभी तो माई ने नाम रखा, फूलन देवी
हाँ तो, एक दिन जब वह बड़ी हो गई
तो जात और दौलत का धतूरा खाए पिशाचों ने
उसकी आत्मा को उसकी हड्डियों से इतना घिसा
कि वह पत्थर हो गई
कुत्सित देवताओं का वरदान पाए अमानुषो ने
तिस पर भी नहीं माना
पत्थर हो गई फूलन को पत्थर से घिसा
इस तरह से तब फूलन आग हो गई
(कविता में कहना मुमकिन नहीं कि कैसे उसकी योनि को बैल की तरह जोता गया और स्तनों को चमार की तरह खटाया गया)
अब जब अय्याश ज़ुबानों के कथकहे फूलन को हत्यारिन कहते हैं
तब मैं पूछना चाहता हूँ गुजरात की नदियों में जिसने पानी की जगह ख़ून बहाया, वह कहाँ है
कहीं वह देश का नेतृत्व तो नहीं कर रहा?
मैं भोपाल और मुज़फ़्फ़रनगर पूछना चाहता हूँ
बाबरी और गोधरा पूछना चाहता हूँ
उन सभी हत्याकाण्डों के बारे में पूछना चाहता हूँ
जो समाजसेवा की तरह याद किए जाते रहे हैं
और अब मैं तुम्हारे जवाब का इन्तज़ार किए बग़ैर
गर्व से सिंची आवाज़ और सम्मान से तना मस्तक उठाए
कहना चाहता हूँ
हाँ , वह हमारे इतिहास की बहादुर लड़ाका है
इस देश की आधी मर्द हुई आधी आबादी के बीच
वह पहली पूरी औरत है
एक औरत जो अपने हक़ के लिए लड़ना सिखाती है
एक औरत जो आत्मा के घाव भरना बताती है
बेशर्म कथकहों का क्या है
वे सच छुपाने के लिए चिल्लाकर कहते रहेंगे कि
उसकी काया सिर्फ़ हाड़ और माँस से निर्मित थी
और हम कविता में चुपके से अपनी बात छोड़ आएँगे
फूलन जन्मी तो फूल सी थी
पर वह सही-सही पत्थर और आग से बनी थी ।