लघुत्तम है उसका अस्तित्व
जिसे कोई नहीं जानता
महत्तम है उसकी ग़रीबी
क्षितिज तक फैली छायाओं के सामान
जिसे सब जानते हैं
चलते और कुचलते
(रचनाकाल : 06.10.1965)
लघुत्तम है उसका अस्तित्व
जिसे कोई नहीं जानता
महत्तम है उसकी ग़रीबी
क्षितिज तक फैली छायाओं के सामान
जिसे सब जानते हैं
चलते और कुचलते
(रचनाकाल : 06.10.1965)