तीसरे पहर के मध्य प्रतिरोध करती हुई
और रात्रि के मध्य समेटती-सहेजती हुई
एक कमसिन लड़की की टकटकी ।
पढ़ने-लिखने के प्रति बेपरवाह,
उसका समूचा अस्तित्व दो स्थिर आँखों में सिमटा हुआ ।
दीवार पर रोशनी ख़ुद-ब-ख़ुद हट जाती है ।
वह अपना अंत देखती है या अपना आरम्भ ?
कहेगी कि कुछ नहीं देखती ।
अनंत विस्तार पारदर्शी है।
वह कभी नहीं जानेगी कि उसने क्या देखा ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल