देखने में सपना
और जीने में पहाड़ जैसी
मरे हुए समुद्रों की हड्डियाँ फैली हैं
कंधे से उतरती हैं चींटियों की कतारें
लोग बैठे हैं फ़ौजी गाड़ियों में
अपनी दुनिया से दूर
सूखे हुए लोग
धरती के हाथ-पैर बांधने के लिए
ऊबी हुई सतर्क आँखें
एक ही कुनबे के लोग खड़े हैं
अलग वर्दियों में आमने-सामने
ऊपर आसमान का नीला रंग
जहाँ नहीं हैं काँटें के तार पाँच देशों के।