रफ़्ता-रफ़्ता उतरती है शाम
उतरता है शहर पर एक जाल
हर चीज़ को कसता हुआ
अपनी अदृश्य गिरफ़्त में
जाल के पार दिखती है रोशनियाँ
इस्पात और कंकरीट के इस जंगल में
साथ की खोज में भटकते हुए
मैं आवाज़ दूँ तो
क्या कोई जवाब आएगा ?
रफ़्ता-रफ़्ता उतरती है शाम
उतरता है शहर पर एक जाल
हर चीज़ को कसता हुआ
अपनी अदृश्य गिरफ़्त में
जाल के पार दिखती है रोशनियाँ
इस्पात और कंकरीट के इस जंगल में
साथ की खोज में भटकते हुए
मैं आवाज़ दूँ तो
क्या कोई जवाब आएगा ?