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लन्दन डायरी-7 / नीलाभ

कैसी अजीब बात है
बाहर की बारिश और
अन्दर के कोहरे से
भाग कर
मैं इस पब में आ बैठा हूँ
यहाँ शनिवार की शाम का शोर है
एक हंगामा है
जिसका न कोई और है, न छोर

शराब के घूँट भरता हुआ
मैं रचता हूँ
खुले हुए दिन
और पारदर्शी हवा
जब सुनहरी धूप
पके हुए सन्तरे की तरह
तुम्हारी देह की मुकम्मल गोलाइयों की तरह
हवा में तिरते हुए राग की तरह
ख़ून में लहलहाती आग की तरह
एहसास के शिखर तक चढ़ती चली जाती थी
पब में शनिवार की शाम का शोर है
बाहर बारिश! अन्दर बेपनाह कोहरा

अगर इस सबसे बचना चाहूँ
तो पता नहीं
मुझे कहाँ जाना होगा