Last modified on 31 दिसम्बर 2011, at 01:09

लफ़्ज़ों की रोशनी / मख़्मूर सईदी

तेरे अल्फ़ाज़ घोर अंधेरे में
जुगनूओं की तरह चमकते हैं
इस चमक में तलाश करता हूँ
अपने भटके हुए ख़्यालों को
अपने खोए हुए वजूद को मैं