लफ्ज़ की बुनियाद
चुप के यह कैफियत
सिर्फ़ अल्फाज़, जैसे भी
जो भी, जहाँ से भी आयें, सुनें!
अपनी आँखों के नज़दीक लाकर
उन्हें, देख पायें
कहीं से ज़रा छू सकें ।
और तब हम से शायद ज़मानों-मकां के लिए
इक नया लफ्ज़ इजाद हो
जो की आइन्दा सोचों की बुनियाद हो,
और मुमकिन है यह भी हामी कोई
गुमशुदा याद हो।