जब सुबह-सुबह सूरज
जलाता है अपना स्टोव
और आदमी अपनी बीड़ी
तो कितना अजब है कि दोनों को
यह पता नहीं होता
कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है
उस सम्वाद को फिर से शुरू करने की
जो एक शाम चलते-चलते
सदियों पहले कहीं बीच रस्ते में
टूट गया था।
जब सुबह-सुबह सूरज
जलाता है अपना स्टोव
और आदमी अपनी बीड़ी
तो कितना अजब है कि दोनों को
यह पता नहीं होता
कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है
उस सम्वाद को फिर से शुरू करने की
जो एक शाम चलते-चलते
सदियों पहले कहीं बीच रस्ते में
टूट गया था।