तुम हौ लरका गाड़ीवान के
जतन सें गाड़ी हाँकौ।
अर्थ-काम दो चका चढ़े हैं भौंरा बँधो धरम कौ,
धीरज-धुरा, पटा परमारथ, कसना कसो करम कौ;
भरे पंथ में छल के ककरा, और कपट के लोटें झकरा।
भव-बाधा की कठिन चढ़ान पै,
तुम अगल-बगल जिन झाँकौ।
बड़े भाग सें तुम्हें मिली है, जा दद्दा की गाड़ी,
दिन छित घरै लौटियो, ऊँघ न जइयो, करकें ठाड़ी,
संसय-निसा घिरन ना पाबै, भय-भरका में गिरन न पाबै।
ई बैहड़ में कोस प्रमान पै,
स्वारथ डारत है डाँकौ।
सत संगत गुलगुलौ सलीता तुम गाड़ी में डारौ,
सुमति-सखी रूठी, मनाय कें बिनती कर बैठारौ,
घाम-घमंड न देह तचाबै, रिस की लपट न नाच नचाबै।
खटला उसलें ना ईमान के,
तुम छिमा-छाँयरो ढाँकौ।
बल-बैभव दो बैल नहे हैं, इक लीला इक धौरा,
मरजादा कीं नाथें इनकीं, हैं संयम के जौरा,
भरैं रोस में बनें मुचर्रा, डर सें काँपें बन जायँ गर्रा।
कबी, ‘बुँदेला’ आतम-ग्यान कौ
तुम औगा लै लो बाँकौ।