Last modified on 8 मई 2009, at 14:08

ललक / त्रिलोचन

(कालिदास से साभार)

हाथ मैं ने

उँचाए हैं

उन फलों के लिए

जिन को

बड़े हाथों की प्रतीक्षा है ।


फलों को

मैं देखता हूं

जानता हूं

चीन्हता हूं

और

उन के लिये

मुझ में ललक भी है ।


हाथ मैं ने

उँचाए हैं

उन फलों के लिये

जिन को

बड़े हाथों की प्रतीक्षा है

डर नहीं है

हँसा जाऊँगा !


('तुम्हें सौंपता हूं' नामक संग्रह से )