लहुलुहान हूँ मैं
घायल आत्मा है
चीत्कार तड़प रही है
धरती से आसमाँ तक
किन्तु मैं हारा नहीं हूँ।
फूटती है बिजलियाँ
कंपकपाते हैं बाजू
टूट गए है तूणीर
धूल धूसरित हो गयी है आशाएँ
किन्तु धड़क रहा हूँ
और धड़कूँगा इसी तरह।
ऐ वक्त के ख़ुदाओं!
नहीं ले रहा हूँ दम
जीत रहा हूँ थकन
सी रहा हूँ ज़ख्म
लौटूँगा !
लौटूँगा!!
जुझूँगा, इसी समर में।